मेरे बारे में

                                                      

नाम :-  शंकर एल आँजना पिता श्री लिखमारामजी चौधरी (भुरिया )
पता :- 181, चौधरीयो की ढाणीया, गाँव लुनियासर, पोस्ट लुनियासर, तहसील सांचौर, 
जिला जालौर राजस्थान 343041

मूल जानकारी



    

पिछले कुछ सालो का विवरण 



2013
2012
2010
2009

2013
2013
2013
2013 
2013

2013

मेरी कहानी मेरी जुबानी 







मेरे बारे मे जितना कुछ मैं कह सकता हूं उस से ज्यादा और सही तो मुझसे जुड़े लोग ही कह पायेंगे…

समझ नही पाता कि अपने बारे में क्या कहुं क्योंकि अपने आप को जानने समझने की प्रक्रिया जारी ही है…निरंतर्……फ़िर भी… जितना मैंने अपने-आप को जाना-समझा…

"बुरा जो देखण मैं चला,बुरा ना मिलया कोय,
जो मन खोजा आपणा तो मुझसे बुरा ना कोय"

शायद मैं अपने लिए धूर्त शब्द का प्रयोग कर सकता हूं। जितना विनम्र उतनी ही साफ़-कड़वी ज़ुबान भी…शांत परज़िद्दी,कभी-कभी अड़ियल होने के हद तक… अक्सर बातचीत के दौरान हल्की-फ़ुल्की बातें करके माहौल को हल्का बनाए रख्नना पसंद है।
कभी-कभी ऐसा लगता है कि मैं समझदार हूं (ऐसी गलतफ़हमी अक्सर बार-बार हो जाती है)… वहीं कभी कभी दुसरी ओर ऐसा लगता है कि मैं अभी भी नासमझ हूं…दुनियादारी सीखने मे मुझे और भी समय लगेगा…(यह सोच एक मजाक लगे पर शायद यही सच है)। भीड़ मे रहकर भी भीड़ से अलग रहना मुझे पसंद है……कभी- कभी सोचता हूंकि मैं जुदा हूं दुसरों से,पर मेरे आसपास का ताना-
बाना जल्द ही मुझे इस बात का एहसास करवा देता है कि नहीं,मैं दुसरों से भिन्न नहीं बल्कि उनमें से ही एक हूं……!

"कर भला तो हो बुरा", जानें क्यों यह कहावत मुझ पर कुछ ज्यादा ही चरितार्थ होती है…करने जाता हूं किसी का भला,वापस लौटता हुं चार बातें सुनकर-अपनी बुराई लेकर…खैर…नेकी कर और दरिया में डाल…!

कभी लगता है कि मेरे अन्दर गुस्सा नाम की चीज् ही नहीं…लेकिन कभी-कभी यह भी लगता है कि मुझे बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है…भावुक इतना कि भावनात्मक संवाद सुनकर या पढ़कर आँखें
डब-डबा जाती है…पर दुसरे ही पल इतना क्रुर भी कि किसी के नाखून उखाड़ने में भी संकोच ना हो…
भले ही रुपए-पैसे से धनी नहीं पर दोस्तों के मामले में जरुर धनी हुं…दोस्त ही यह एहसास करवाते हैं कि मैं उनके लिए भरोसेमंद हूं…, पर मैं निश्चित तौर से कह सकता हूं कि मैं भरोसेमंद नहीं हूं…

मेरे स्वभाव में उत्सुकता कुछ ज्यादा ही है इसीलिए छात्र जीवन से
 पत्रकारिता की ओर झुकाव रहा|
और हां,अक्सर जब कभी अपने अंदर कुछ उमड़ता-घुमड़ता हुआ सा लगता है,लगता है कि अंदर दिलो-दिमाग में कुछ है जिसे बाहर आना चाहिए,तब पेन अपने-आप कागज़ पर चलने लगता है और यही बात मुझे एहसास दिलाती है कि मैं कभी-कभी कुछ लिख लेता हूं....

इस सब के अलावा,बहुत से मौकों पर मैं इतना ज्यादा झुक जाता हुं कि लगे जैसे इस इंसान मे रीढ़ की हड्डी ही ना हो……पर मुझे लगताहै कि मुझमे वह सब कुट-कुट कर भरा हुआ है जिसे हम अंग्रेज़ी मे "ईगो" कह्ते हैं…

लब्बो-लुआब यह कि मैं एक आम भारतीय हुं जिसकी योग्यता भी सिर्फ़ यही है कि वह एक आम भारतीय है जिसे यह नहीं मालुम कि आम से ख़ास बनने के लिए क्या किया जाए फ़िर भी वह आम से ख़ास बनने की कोशिश करता ही रहता है…।



पसन्दीदा उक्तियाँ

अगर रख सको तो एक निशानी हूँ मैं,
खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं ,
रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया,
वो एक बूँद आँख का पानी हूँ मैं.....
सबको प्यार देने की आदत है हमें,
अपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमे,
कितना भी गहरा जख्म दे कोई,
उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें...
इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूँ मैं,
सवालो से खफा छोटा सा जवाब हूँ मैं,
जो समझ न सके मुझे, उनके लिए "कौन"
जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूँ मैं,
आँख से देखोगे तो खुश पाओगे,
दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूँ मैं,,,,,
"अगर रख सको तो निशानी, खो दो तो सिर्फ एक
कहानी हूँ मैं". ......

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शंकर एल. आँजना

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